भारत में बड़ी तेजी से न्यूक्लियर परिवार की संख्या बढ़ी है. ऐसे में परिवार के वृद्धों की जिम्मेदारी से भी किनारा किया जा रहा है , इससे इन बुजुर्गों की स्थिति आये दिन और खराब होती जा रही है.
हाल में ही बुजुर्गों की ख्याल रखने वाली संस्थाओं में भी इजाफ़ा हुआ है. खास तौर पर ऐसे केंद्रों की संख्या शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में इनकी संख्या ज्यादा है
इसमें कुछ स्ववित्त हैं तो कुछ सरकार और दान द्वारा पोषित हैं
आइये बुजुर्गों की महत्ता को समझते हैं :
बड़े बुजुर्गों से हमें वो अनुभव मिलते हैं जो उन्होंने सालों की मेहनत से समाज और व्यापार के साथ साथ दुनियाँ से सीखा होता है इसे समझ कर हम आज को अच्छा बना सकते हैं।
ये आने वाले पीढ़ियों के साथ तालमेल का तरीका सीखते हैं और मुश्किल समय में इनके ही अनुभव काम आते हैं
ये एक ऐसे कड़ी होते हैं जिनसे हमारी संस्कृति और समाज जुड़ा होता है , इन्ही से हम अतीत से कुछ सीख सकते हैं
बुजुर्ग हमे धर्म धैर्य और नैतिकता की गहरी समझ देते हैं
हम इनके लिए क्या कर रहे हैं :
भारत अपने बुजुर्गों के रख-रखाव और देखभाल बहुत संवेदनशील है और औपचारिक रूप से हमारी नीतियों और योजनाओ का जरूरी हिस्सा हैं
UN World Population Ageing रिपोर्ट में में कहा गया है की भारत में अभी बुजुर्गों की जनसँख्या लगभग 8% हैं जो 2050 तक 20% तक की हो जायेगी।
2050 तक, वृद्ध लोगों का अनुपात 326% बढ़ जाएगा, 80 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में 700% की वृद्धि होगी, जिससे वे भारत में सबसे तेजी से बढ़ने वाले आयु वर्ग बन जाएंगे।
भविष्य इसको ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि हमारी नीतिगत योजनाएं ऐसी होनी चाहिये की हम समाज के इस बदलाव के लिए तैयार हों।
क्या प्रावधान हैं:
हमारे संविधान के अनुच्छेद 41 और 46 में बुजुर्गों के लिए विशेष प्रावधान किये गए हैं हमारे निति निदेशक तत्वों में भी राज्य से वृद्धों की देखभाल की सलाह दी गयी है
Hindu marriage and adoption act, 1956 के Section 20 में वृद्ध माता-पिता को अपने साथ रखने के लिए अनिवार्य प्रावधान हैं।
Criminal Procedure Code के Under Section 125 में घर के बड़े माता-पिता अपने बच्चों से भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं।
Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 में उत्तराधिकारियों के लिए अपने माता-पिता या परिवार के बुजुर्गों को साथ रखने और देखभाल के लिए इसे कानूनी प्रावधान का प्रयास करता है।